गांधी कल,आज और कल

          "गांधी कल,आज और कल"


"हमारी धरती के पास प्रत्‍येक व्‍यक्ति की आवश्‍यकता के लिए तो बहुत कुछ है, पर किसी के लालच के लिए कुछ नहीं।”
                                                              ( -गांधी जी)
 विश्‍व आज पर्यावरणीय समस्याओ, भूख से होने वाली मृत्‍यु ,गरीबी,बेरोजगारी, सम्पन्नता से उत्‍पन्‍न समस्‍याओं( तनाव, कुंठा ) के साथ साथ धार्मिक उन्माद ,साम्प्रदायिकता,आतंकवादी हिंसा, आये दिन परमाणु हथियरों के प्रयोग की धमकियाँ,हिंसक संघर्ष,राजनैतिक पतन,का सामना कर रहा है।
     ऐसे में विश्व पटल पर सभी समस्याओं का समाधान अगर किसी एक व्यक्ति के जीवन दर्शन,  सिद्धांतों और विचारों से हो सकता है, तो वह केवल और केवल "महात्मा गांधी " ही हैं।
      भारत भूमि का यह  सौभाग्य ही है की ,गांधी जैसे महान महापुरुष ,महात्मा यहाँ जन्मे ।  महात्मा गांधी के विचार देश काल और सीमा से परे हैं । बीतते समय के साथ गांधी केवल एक व्यक्ति से अधिक, शांति और अहिंसा रूपी एक विचार बनते जा रहे हैं।
    दुनियाँ मे चाहे शांति की बात की जाए या फिर बिना हिंसा प्रतिरोध, की बात आती है तो गांधी का "सत्याग्रह" का विचार, विज्ञान के किसी सिद्धान्त भाँति काम करता है। एकदम सटीक परंतु इसके प्रयोग की भी कुछ शर्तें जिनमें अहिंसा, और धैर्य सर्वोपरी है।

 
 गांधी के जीवन और सिद्धांतों पर आज भारत व विश्व के अनेक श्रेष्ठ विश्वविद्यालयों मे लाखों छात्र अध्ययन (एमए, पीएचडी , एम फिल) कर रहे हैं।  क्योंकी गांधी को समझना इतना आसान नही है फिर भी भारतीय होने के नाते हमे भी ज्यादा नही तो एक बार तो उनकी जीवनी "मेरे सत्य के प्रयोग "अवश्य पढ़नी चाहिए। क्योंकि गांधी नोटों पर छापे एक चित्र और राष्ट्रपिता के इतार उनके जीवन के हर कर्म मे कोई न कोई संदेश मिलता है।
 जहाँ तक गांधी को में पढ़ व समझ पाया हूँ मैने पाया है जीवन के प्रत्येक पहलू चाहे वह धार्मिक,सामाजिक,आर्थिक,और राजनैतिक अथवा नैतिक,व्यक्तिगत,संसारिक,आध्यतिमक गांधी ने हर विषय पर अपने विचार दिये है और हर क्षेत्र की समस्याओं पर समाधान प्रस्तुत किये है हालांकि कहीं-कहीं कुछ बातें आदर्शवादी लगती हैं। किंतु  अधिकतर,समाधान व्यवहारिक और आसान है बशर्ते उनका प्रयोग धैर्य और समर्पण के साथ  किया जाए।

गांधी कहते थे -
     " हो सकता है आप कभी ना जान सके कि आपके काम का क्या परिणाम हुआ लेकिन यदि आप कुछ नहीं करेंगे तो कोई परिणाम नहीं होगा"

        मेरा उद्देश्य गांधी जी का जीवन परिचय कराना बिल्कुल भी नही है वह तो आप जानते होंगे हो सकता है मुझसे बेहतर जानते होंगे । मैं तो बस उनके जीवन की उन साधारण सी बातों पर आपका ध्यान खीचना चाहता हूँ, जिन्हैं हम उनके जीवन परिचय मे अक्सर ध्यान नही देते।
 
      गांधी जी जब अफ्रिका से वापस भारत आये तो उन्होंने सबसे पहले भारत भ्रमण किया उस दौरान उन्होंने भारत के विभिन्न आयमों से जानने की कोशिश की भारत की विविधता,अनेको भाषायें,ग्रामीण समुदाय,जनजातीय जीवन,लोगो मे भीतर तक घुसी जाति व्यवस्था,लोगो की गरीबी,अद्धनगें लोग,समाज के निचले पायदान के लोग, यहाँ के किसानों की हालात,जैसे अनेक बातों को उन्होंने नजदीक से जाना।और इन सबसे प्रभावित होकर उन्होंने बिल्कुल सदा जीवन अपनाने का प्रण लिया । यहाँ तक की उन्होंने कपड़े भी उसी सबसे गरीब किसान या दिहाडी मजदूर की तरह पहनना शुरू कर दिया ताकि वह भी उन जैसे दिखे, देश का सबसे पिछड़ा व्यक्ति भी उनसे बात करने मे हिचके ना । इसका परिणाम सकारात्मक हुआ, लोग उनसे जुड़ने लगे और गांधी जी बात  को सुनने लगे। यह भी गांधी जी का एक सफल प्रयोग ही कहा जा सकता है।
      इसके अलावा  इसके अलावा गांधी जी ने लोगों से अधिक से अधिक संपर्क बनाने और जनकल्याण हेतु रचनात्मक कार्यक्रम जैसे चरखा केंद्रों की स्थापना,रात्रि विद्यालय,मंदिर प्रवेश कार्यक्रम,अछूतोद्धार कार्यक्रम,नशा मुक्ति हेतु विभिन्न  कार्यक्रम इत्यादि  प्रारंभ किए। कल्याणकारी कार्यक्रमों के माध्यम से जनता की नैतिक,सामाजिक,आर्थिक उत्थान हेतु प्रयास तो करते ही थे दूसरी ओर वह जनता को राजनीतिक रूप से शिक्षित और प्रशिक्षित भी करने का कार्य करते थे।
       गांधीजी जनसंचार तकनीक के मामले में निपुण थे वह सामने उपस्थित समूह के सदृश होकर उन्हें उनकी भाषा में संबोधित करते थे। गांधी के भाषणों में विचारों की सरलता,भाषा की सूक्ष्मता और उद्देश्यों की स्पष्टता दृष्टिगत होती थी। यही कारण रहे की प्रभावशाली वर्ग और बुद्धिजीवियों का संगठन कहलाने वाली कांग्रेस का आधार विस्तृत हुआ और कांग्रेस एक जनसंगठन बन गयी।

     गांधी जी ने अपनी बात को लोगों तक पहुंचाने के लिए कुछ समाचार पत्र भी प्रकाशित करना प्रारंभ किया,जिनके माध्यम  से वह अपनी रणनीति,विरोध,प्रार्थना आदि व्यक्त करते थे।  गांधी अपने विरोध में अहिंसा और सत्याग्रह का पालन पूरी निष्ठा से करते थे और स्वराज के लिए लगातार लोगों को प्रेरित करते और स्वयं प्रयत्नशील रहते थे।
     गांधी ने लिखा है " हिंसात्मक उपायों से लिया गया स्वराज भी हिंसा  पूर्ण होगा और वह दुनिया के लिए व खुद भारत के लिए भय का कारण क्षेत्र होगा"। उन्होंने उस समय की क्रांतिकारियों की वीरता को तो सराहा परंतु उनसे आग्रह किया कि वे हिंसा त्याग कर अहिंसक तरीकों से अपना विरोध प्रदर्शित करें  क्योंकि अंग्रेजों की हिंसात्मक सख्ती का सामना करना हमारे लिए असंभव था उनसे केवल  अहिंसा और सत्याग्रह के बल पर ही जीता जा सकता था।
  "  सत्य को स्थापित करने हेतु अहिंसक तरीके से विरोध करना कि सत्याग्रह है। " इसके अनेक साधन है- जिसमें उपवास,हड़ताल,स्कूल-कॉलेज  का त्याग,बहिष्कार,पद-त्याग इत्यादि हैं। गांधीजी ने कहा था कि सत्याग्रह के पीछे क्रोध या दोष नाम मात्र भी नहीं होना चाहिए और उपवास तो सत्याग्रही का आखरी अस्त्र होना चाहिए लेकिन जैसा कि आज देखने में आता है सत्याग्रही उपवास से ही सत्याग्रह प्रारंभ करते हैं। गांधी जी का सत्य और अहिंसा में निष्ठा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब असहयोग आंदोलन अपने चरम पर था तभी  चोरा-चोरी कांड के बाद उन्होंने आंदोलन को अचानक वापस ले लिया। क्योंकि इसकी प्रतिक्रिया भी हिंसक होगी और लंबे समय बाद अहिंसक विरोध के लिए उठ खड़े हुए भारतीय फिर से दुबक कर बैठ जाएंगे।
    गांधी जी की सत्य और अहिंसा में यही निष्ठा उन्हें उस ब्रिटिश साम्राज्य को चुनौती देने मैं सक्षम बनाती थी,जिसका सूरज कभी अस्त नहीं होता था ।गांधी अंग्रेजों का विरोध भारत में ही नहीं बल्कि आयरलैंड,पोलैंड ,मिश्रा आदि की आजादी का भी समर्थन करते थे। ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने के गांधी के साहस ने विश्व प्रेस और मीडिया का ध्यान अपनी ओर खींचा की " सचमुच कोई आदमी है! जो निहत्था-अहिंसक होकर  ब्रिटिश सत्ता से लड़ रहा है।" तत्कालीन समय में गांधीजी की अहिंसा और सत्याग्रह की प्रयोगो की विश्व में चर्चा का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि उस समय के महान वैज्ञानिक आइंस्टाइन ने यहां तक कह दिया था कि" आगामी पीढ़ियां शायद विश्वास ही ना करें कि हाड-माँस का कोई ऐसा पुतला भी  धरती पर हुआ होगा। "
   
   गांधी जी धर्म के सम्बन्ध में कहते थे कि मेरे लिए राम-रहीम,कृष्ण-करीम,पुराण-कुरान सब एक हैं। धर्मों के मार्ग में विभिन्नता चाहे कितनी ही हो लेकिन उन सब का लक्ष्य एक ही है।  उनके धर्म का दूसरा नाम सत्य प्रेम आचार और नैतिकता है।
      अगर गांधी के सामाजिक दृष्टिकोण को देखें तो वे वैश्विक नस्लवाद से व्यथित और भारतीय जातिवाद के विरोधी थे हालांकि वे भारतीय वर्ण व्यवस्था मैं विश्वास रखते थे तथा उनका मानना था यह एक श्रेष्ठ व्यवस्था है हालांकि इसकी कुछ कमियों को दूर कर लिया जाए।
    गांधीजी के अनुसार अधिकतम व्यक्तियों का अधिकतम सुख ही पर्याप्त नहीं है सभी के लिए अधिकतम सुख की प्राप्ति समाज व सदस्यों का उद्देश्य होना चाहिए। गांधी जी ने समाज के संबंध में 'सर्वोदय' की अवधारणा प्रस्तुत की थी वह कहते थे प्रत्येक व्यक्ति और समूह को अपने सर्वांगीण विकास के साधन और अवसर मिलें। मेरे स्वराज का सपना गरीबों का स्वराज्य उनके लिए जीवन की आवश्यक वस्तुएं धनिकों की भांति प्राप्त हो जब तक जीवन की साधारण सुविधाएं सर्व सुलभ ना हो तब तक स्वराज पूर्ण स्वराज नहीं होगा। इसी क्रम में गांधी जी ने हरिजन उत्थान और अस्पृश्यता निवारण हेतु भी अनेक कार्यक्रम किए और हरिजनों को राजनीतिक और आर्थिक रूप से सशक्त और उनकी सहभागिता बढ़ाने हेतु भी प्रयास किए।
        गांधीजी समाज के विकास के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य को मूल आवश्यकता मानते थे।  स्वास्थ्य के लिए गांधी जी ने स्वच्छता पर सर्वाधिक जोर दिया और शिक्षा के संबंध में उन्होंने ऐसी शिक्षा की वकालत की जिसमें बच्चे स्वरोजगार हेतु कौशल सीख सकें और आत्मनिर्भर बनने का गुण उनमें बचपन से ही पैदा हो।
    गांधीजी  कहते थे राज्य हिंसा का केंद्रीकृत और संगठित रूप है । वे एक ऐसे आदर्श राज्य की कल्पना करते थे जिसमें कोई राज्य नहीं होगा लोग स्वयं ही अपने कानून बनाएंगे और उनका पालन करेंगे सत्ता का कोई भी एक ऐसा केंद्र नहीं होगा जिसके कानून लोगों को मानने पढ़ें एक तरह से  गांधी प्रत्यक्ष लोकतंत्र की बात करते थे जहां ना तो किसी प्रकार की पुलिस होगी और ना ही कोई सत्ता और यही गांधी का स्वराज भी था।
     जब समाजवादी विचारधारा अपनी प्रासंगिकता के शिखर पर थी उस दौरान गांधी जी ने 'ट्रस्टीशिप' का सिद्धांत समाजवाद के उस विकल्प के रूप में दिया जिसमें निजी संपत्तियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया जाता था। गांधीजी का ट्रस्टीशिप का सिद्धांत कहता है "धनी या संपन्न वर्ग के लोग अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति करने के बाद बचे अतिरिक्त धन से जनकल्याण और जनहित मैं लगा देना चाहिए क्योंकि धनी वर्ग बचे हुए धन का संरक्षक( ट्रस्टी) मात्र है उपभोक्ता नहीं। "
   भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान  गांधीजी की ख्याति बढ़ती गई और देश ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी गांधीजी के सत्य अहिंसा ,सत्याग्रह के सिद्धांतो और ब्रिटिश सत्ता को चुनौती देने की सामर्थ्य जुटा पाने के कारण। गांधी जी को विश्व पर पटल पर पहचान मिली उनके कई अनुयायी और उनसे प्रभावित  होने वाले लोगों में आज कई महान नाम शामिल हैं , चाहे बात दक्षिण अफ्रीका के रंगभेद विरोधी कार्यकर्ता और पूर्व राष्ट्रपति "नेल्सन मंडेला"
   या फिर अमेरिका के नागरिक अधिकार आंदोलन के नेता "मार्टिन लूथर किंग"
  या म्यांमार की शांति पुरस्कार विजेता "आंग सान सू की" । ये सभी गांधी के विचारों से प्रभावित और उनके कार्यो से प्रेरित थे।
    गांधी के कुछ कार्यों की आलोचना भी की जाती है परंतु अगर गांधी जी के व्यापक योगदान को देखा जाए तो वे उतने मायने नही रखते गांधीजी ने भारतीय  स्वतंत्रता आंदोलन को एक जन आंदोलन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
    अगर गांधीजी के व्यक्तिगत जीवन को देखे तो गांधीजी अपने कर्तव्य के प्रति निष्ठावान लगनशील व धैर्यवान थे तथा उनमें स्वावलंबन एवं समय की प्रति पाबंदगी जैसे अनेक गुण थे।      
           वे केवल आदर्शवादी ही नहीं थे उन्हें देश की विभिन्न समस्याओं को तीक्षण नजर से देखा समझा था व उनके व्यावहारिक हल ढूंढने का निरंतर प्रयत्न किया,साथ-साथ आदर्शों को यथार्थ रूप देने के लिए प्रयत्नशील रहते थे। गांधी के आदर्शवाद का एक रूप उस समय देखने को मिला जब उन्होंने भारत पाकिस्तान विभाजन होने के बाद पाकिस्तान को आर्थिक सहायता दिलवाने हेतु अनशन किया। गांधी कभी भी भारत के विभाजन के पक्ष में नहीं रहे वे हमेशा कहते रहे कि  भारत का विभाजन मेरी मृत्यु सैया पर होगा।  परंतु अंतिम समय में बनी हालातों में कुछ ऐसी परिस्थितियों को जन्म दिया की विभाजन रोकना असंभव था और अगर विभाजन रुकता भी तो सांप्रदायिकता उस हद तक बढ़ चुकी थी कि उसे रोकना संभव ना था।
      विभाजन के बाद हर कोई आजादी के जश्न में मग्न था परंतु गांधी जी सिर्फ एक ऐसे व्यक्ति थे जो विभाजन से उपजे सांप्रदायिकता के दंगों को शांत करने के लिए लोगों के बीच जाकर उनसे प्रार्थना कर रहे थे और लोगों में एकता और भाईचारे की भावना स्थापित करने के प्रयास कर रहे थे।गांधी की हत्या आज और आने वाली पीढ़ियों के लिए एक शर्म का विषय बनी रहेगी।

    आज विश्व पटल पर गांधी को शांति, अहिंसा, प्रेम, और उनके  सत्याग्रह के लिए जाना जाता है। गांधी आज व्यक्ति से एक विचार बनता जा रहे हैं , दुनिया आज गांधी को अपना आदर्श मान रही है। गांधी की कही हर बात हर एक विचार आज प्रसांगिक होता दिख रहा है और गांधी का अहिंसा का विचार बीतते समय के साथ और अधिक मजबूत होता जा रहा है।

   युद्ध व संघर्ष से त्रस्त विश्व राजनीति को 'गांधी दर्शन'भारत की एक अद्वितीय भेंट है।
      गांधी जी का मंत्र था कि "जब भी कोई काम हाथ में लो, यह ध्‍यान में रखो कि इससे सबसे गरीब और कमजोर व्‍यक्ति को क्‍या लाभ होगा "।
यदि हम समावेशी विकास चाहते हैं तो हमें गांधी जी के इस मंत्र को अपने जीवन का आदर्श बनाना होगा।

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